आज इस गरिमामय अवसर पर, मैं आप सभी का दिल से स्वागत करता हूँ। संपादकीय शैली में अपनी बात प्रारंभ करने से पहले एक पंक्ति कहना चाहूँगा:
"कलम की नोक पर चलती है दुनिया,
और विचारों की धार से बदलती है सभ्यता।"
यह मंच केवल शब्दों का नहीं, बल्कि विचारों का संगम है। आज हम यहाँ एकत्रित हुए हैं ताकि संवाद के माध्यम से उन पहलुओं पर प्रकाश डाल सकें, जो समाज और राष्ट्र की प्रगति के लिए महत्वपूर्ण हैं।
"जहाँ हर शब्द हो सटीक, हर सोच हो नई,
वहाँ बदलाव की धारा रुक नहीं सकती कभी।"
मेरा यह विश्वास है कि आपकी उपस्थिति और विचार इस चर्चा को नई ऊँचाइयाँ देंगे।
आप सभी का यहाँ आना यह दर्शाता है कि हमें केवल आलोचना नहीं, समाधान की ओर भी ध्यान देना है।
आइए, इस संवाद को रचनात्मकता और प्रेरणा का एक नया अध्याय बनाते हैं।
धन्यवाद!
नमस्कार, आदरणीय श्रोतागण और प्रिय साथियों।
आज की इस खुशनुमा सभा में, मैं अपनी बात एक मनोरंजक अंदाज में एक दोहे के साथ आरंभ करना चाहूँगा:
"हँसी-खुशी का साथ हो, मन में नई उमंग।
बैठक ऐसी हो जहाँ, मिले विचारों के रंग।"
यह कहते हुए, मैं आप सभी का हार्दिक स्वागत करता हूँ।
आज का यह अवसर केवल संवाद का नहीं, बल्कि थोड़ी मस्ती, थोड़े मनोरंजन और बहुत सारे प्रेरणा के क्षणों का है।
"जहाँ शब्द गुदगुदाएँ, विचारों से दिल भर जाए,
और हँसी के फव्वारे से, हर चेहरा खिल जाए।"
यह तो तय है कि हमारी बातचीत में विचारों की गहराई होगी, पर साथ ही इसमें हल्के-फुल्के पल भी होंगे जो हर मन को सुकून दें।
आइए, इस कार्यक्रम को ऐसी संगति में बदलें, जहाँ सीखने और मुस्कुराने का अद्भुत मेल हो।
आप सभी का इस यात्रा में साक्षी बनना हमारे लिए गर्व की बात है।
"बैठे हैं आज यहाँ, हर कोई अपने खास।
बनेगी यह शाम यादगार, और होगा खूब उल्लास।"
धन्यवाद और शुभकामनाएँ!
GAMGIN Bato se ya sabha me
नमस्कार, आदरणीय श्रोतागण, मंचासीन अतिथिगण और प्रिय साथियों।
आज इस मंच पर अपनी बात रखते हुए मन एक अजीब से भाव में डूबा हुआ है। शुरुआत एक दोहे से करता हूँ:
"जीवन की यह राह है, कांटों से भरपूर।
फिर भी चलता जा रहा, मन आशा से पूर।"
यह दोहा उन परिस्थितियों को बयाँ करता है, जब जीवन कभी-कभी हमारे सामने चुनौतियों का अंबार लगा देता है। आज के इस कार्यक्रम का उद्देश्य भी यही है कि हम अपनी चिंताओं, दुखों और संघर्षों को शब्दों में ढालकर, उनसे उबरने का मार्ग खोजें।
"दुख का सागर गहरा है, पर साहस है नाव।
सत्य, प्रेम, और धैर्य से, पार करेंगे भाव।"
हम सभी ने अपने-अपने जीवन में कई संघर्ष देखे हैं, लेकिन यह भी सत्य है कि इन संघर्षों ने हमें मजबूत बनाया है।
आज इस मंच पर हम सिर्फ अनुभव साझा करने नहीं, बल्कि एक-दूसरे को संबल देने और प्रेरणा देने के लिए एकत्रित हुए हैं।
"गम की रातें लंबी सही, पर सुबह फिर आएगी,
हर दर्द के बाद जीवन में, खुशी मुस्काएगी।"
आप सभी का यहाँ होना, इस बात का प्रमाण है कि उम्मीद कभी मरती नहीं।
आइए, हम मिलकर अपने विचारों को एक नई दिशा दें और हर गम को ताकत में बदलने का संकल्प लें।
धन्यवाद!
नमस्कार, आदरणीय श्रोतागण, मंचासीन अतिथिगण, और प्रिय साथियों।
आज इस मंच पर उपस्थित होकर, मैं अपनी बात की शुरुआत मुंशी प्रेमचंद जी के विचारों को समर्पित एक दोहे से करना चाहूँगा:
"सादगी हो जीवन में, हो परिश्रम का रंग।
मुश्किल राहों में भी, न छोड़ो सत्य का संग।"
मुंशी प्रेमचंद, जो हिंदी साहित्य के अप्रतिम हस्ताक्षर हैं, उन्होंने अपने लेखन में आम जनमानस की पीड़ा, संघर्ष, और उम्मीद को जीवंत किया। उनकी कहानियों ने हमें सिखाया कि जीवन में आदर्श और मानवता से बढ़कर कुछ भी नहीं।
"घनघोर अंधेरों में, जले दीप विश्वास।
सत्य, करुण, सेवा सदा, लाए नया प्रकाश।"
प्रेमचंद के साहित्य की संपादकीय शैली यही कहती है कि शब्दों की शक्ति से समाज को जागरूक करना हमारा कर्तव्य है। चाहे वह किसान की व्यथा हो, मजदूर का संघर्ष, या इंसानियत का गिरता स्तर, उनके विचार हमें सच्चाई का आईना दिखाते हैं।
आज, जब हम यहाँ संवाद के लिए एकत्रित हुए हैं, तो यही प्रयास होना चाहिए कि हम अपने शब्दों में प्रेमचंद की सादगी और उनके विचारों की गहराई को आत्मसात करें।
"कलम बनी हथियार जब, जागा जनसंहार।
प्रेमचंद के शब्द हैं, हर दिल का उद्धार।"
आइए, उनकी प्रेरणा से हम अपने समाज को और बेहतर बनाने का प्रयास करें। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उनके सिद्धांतों को अपने जीवन और कार्यों में शामिल करें।
धन्यवाद।
नमस्कार, आदरणीय श्रोतागण, मंचासीन अतिथिगण, और प्रिय साथियों।
आज की इस पावन सभा में, मैं अपनी बात की शुरुआत हिंदी साहित्य की महान रचनाकार महादेवी वर्मा जी की प्रेरणा से एक दोहे के माध्यम से करना चाहूँगा:
"पीड़ा में जो ज्योति जले, वही सृजन का मूल।
सहज संवेदन से मिले, जीवन को अनमोल फूल।"
महादेवी वर्मा जी का लेखन मानवीय संवेदनाओं और आत्मा की गहराइयों का दर्पण है। उन्होंने न केवल काव्य के माध्यम से नारी-जीवन की व्यथा और शक्ति को स्वर दिया, बल्कि समाज के हर उस पहलू को छुआ, जहाँ बदलाव की आवश्यकता थी। उनकी लेखनी ने हमें सिखाया कि दुख केवल पीड़ा नहीं, बल्कि आत्मबोध और सृजन का साधन भी बन सकता है।
"अश्रु नहीं हैं दुर्बलता, यह जीवन का मर्म।
सपनों के संघर्ष से, बनता जीवन धर्म।"
महादेवी जी के विचार हमें प्रेरित करते हैं कि कठिनाइयों में भी सृजनशील बने रहें। आज जब हम इस मंच पर एकत्र हुए हैं, तो हमारा उद्देश्य भी यही होना चाहिए कि हम अपने विचारों से समाज को नई दिशा दें और हर व्यक्ति के भीतर छिपी क्षमता को पहचानें।
"अंधकार से न डरें, ढूँढें उसमें ज्योति।
जीवन का यह सार है, हर पल बनें अनमोल मोती।"
उनकी कविताएँ हमें सिखाती हैं कि हर चुनौती में सौंदर्य है, हर पीड़ा में संभावना है। आइए, हम उनकी विचारधारा को अपने जीवन का मार्गदर्शक बनाकर एक बेहतर समाज की रचना का संकल्प लें।
धन्यवाद।
नमस्कार, आदरणीय श्रोतागण, मंचासीन अतिथिगण, और प्रिय साथियों।
आज इस मंच पर अपनी बात रखते हुए, मैं एक ऐसे व्यक्तित्व की प्रेरणा को साथ लाना चाहता हूँ, जो न केवल सिनेमा के शिखर पर हैं, बल्कि अपनी आवाज़ और व्यक्तित्व से हर दिल में एक गहरी छाप छोड़ते हैं—जी हाँ, श्री अमिताभ बच्चन जी। शुरुआत एक दोहे के साथ:
"जितना गहरा घाव हो, उतना बढ़ता ज्ञान।
संघर्षों के पथ चलें, बने विजयी इंसान।"
अमिताभ बच्चन जी का जीवन हमें सिखाता है कि संघर्ष और उतार-चढ़ाव से भरी राहें ही इंसान को महान बनाती हैं। उनकी यात्रा एक प्रेरणा है, जो बताती है कि असफलता कभी भी अंत नहीं होती, बल्कि यह एक नए आरंभ की भूमिका होती है।
"जिनकी वाणी में हो जादू, जिनके शब्द विचार।
उनके कर्मों से सजे, हर युग का श्रृंगार।"
उनकी संवाद अदायगी, उनका समर्पण और उनकी मेहनत, यह सब हमें यही संदेश देता है कि अपने सपनों को पाने के लिए ईमानदारी और अनुशासन आवश्यक हैं। उनके जीवन का हर पहलू हमें यह सिखाता है कि मुश्किलों के बावजूद, कभी हार नहीं माननी चाहिए।
"उठो, बढ़ो, न थमो कभी, चाहे हो तूफान।
जीवन का यह सत्य है, संघर्ष ही पहचान।"
आज जब हम इस सभा में एकत्रित हुए हैं, तो यह हमारा भी कर्तव्य है कि उनके जैसे प्रेरणादायक व्यक्तित्व से सीख लेकर अपने जीवन को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने का प्रयास करें।
धन्यवाद!
नमस्कार, आदरणीय श्रोतागण, मंचासीन अतिथिगण और प्रिय साथियों।
आज इस मंच पर अपनी बात की शुरुआत करते हुए, मैं राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी के ओजस्वी और प्रेरणादायक शब्दों को समर्पित एक दोहे से करना चाहूँगा:
"बलि देने को जो सजा, वही शांति का सेतु।
त्याग, तपस्या और कर्म से, मिलता सच्चा हेतु।"
दिनकर जी के शब्द केवल कविता नहीं, बल्कि युगों के लिए संदेश हैं। उन्होंने अपने लेखन में अन्याय के खिलाफ क्रांति की अलख जगाई और हमें सिखाया कि स्वतंत्रता और न्याय के लिए सतत संघर्ष आवश्यक है।
"वह पथ क्या, जिसमें बंधन हो, वह वाणी क्या, जो मौन।
जो चीर सके हर तम को, वही ज्योति का कौन।"
उनकी ओजपूर्ण कविताएँ हमें सिखाती हैं कि जीवन में वीरता और दृढ़ संकल्प का महत्व कितना बड़ा है। चाहे वह ‘रश्मिरथी’ का कर्ण हो या ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ के सवाल, दिनकर जी ने हमें संघर्ष, आत्मसम्मान और कर्तव्य की राह दिखाई।
"हथियारों से बढ़कर है, विचारों का बलवान।
कलम का सम्मान करो, यही है सच्चा गान।"
आज, जब हम यहाँ एकत्रित हुए हैं, तो दिनकर जी की लेखनी का संदेश हमें यह याद दिलाता है कि सच्चा कर्म ही हमारे जीवन का पथप्रदर्शक होना चाहिए। उनके शब्द हमें आगे बढ़ने, अपने कर्तव्यों को निभाने और अपने समाज को बेहतर बनाने की प्रेरणा देते हैं।
आइए, उनके विचारों को अपने जीवन का हिस्सा बनाकर सत्य, साहस और सेवा की राह पर चलने का संकल्प लें।
धन्यवाद।
नमस्कार, आदरणीय श्रोतागण, मंचासीन अतिथिगण और प्रिय साथियों।
आज इस मंच पर अपनी बात की शुरुआत प्रसिद्ध हिंदी कवि सुमित्रानंदन पंत जी के प्रेरणादायक शब्दों से करना चाहूँगा, जिनकी कविता में प्रकृति, जीवन और मानवता की गहरी समझ दिखाई देती है। उनके लेखन का एक अद्वितीय अंदाज था, जो हर दिल को छू जाता था।
"प्रकृति के गूढ़ रहस्य से, सच्चाई की पहचान।
जीवन की सच्ची कविता है, प्रेम, कर्म और ध्यान।"
पंत जी की कविताओं में प्रकृति से जुड़ी हर एक बूँद, हर एक पंक्ति, हमें जीवन के सत्य से अवगत कराती है। उनका लेखन हमसे यह कहता है कि प्रकृति से जुड़कर ही हम आत्मज्ञान और सच्चे प्रेम को पा सकते हैं।
"जीवन में जो विचारों का हो अभ्यस्त,
वही खोजे सत्य को, वही हो सच्चा व्यक्त।"
सुमित्रानंदन पंत जी ने जीवन के सौंदर्य को, उसकी सादगी को और उसकी कठिनाइयों को अपनी कविताओं में उकेरा। उनकी रचनाओं में, खासकर "मधुशाला" और "हिमालय", में न केवल काव्य सौंदर्य है, बल्कि जीवन और जगत के गहरे अर्थ भी हैं।
"वह काव्य नहीं, जो प्रेम से दूर हो,
प्रकृति से जो न जुड़े, वह हृदय अधूरा हो।"
पंत जी के शब्द हमें यह सिखाते हैं कि जीवन का असली सुख सरलता में है, और सच्चा कर्म वही है, जो निस्वार्थ भाव से किया जाए। उनके विचारों में ऐसी गहरी संवेदनाएँ हैं, जो हमें आत्मज्ञान और आंतरिक शांति की ओर अग्रसर करती हैं।
आइए, हम सब मिलकर पंत जी की प्रेरणा से अपने जीवन में सरलता, प्रेम और संवेदनशीलता का संचार करें।
धन्यवाद।
नमस्कार, आदरणीय श्रोतागण, मंचासीन अतिथिगण और प्रिय साथियों।
आज इस मंच पर, मैं अपनी बात की शुरुआत एक महान कवि और लेखक सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" के प्रेरणादायक शब्दों से करना चाहता हूँ, जिनकी कविताओं में साहस, स्वतंत्रता और मानवता की गहरी धारा बहती है। उनका लेखन न केवल काव्यात्मक था, बल्कि समाज के हर तबके की आवाज भी बनता था।
"आत्मा की शक्ति से बढ़े, आस्था का तेज हो।
निरंतर संघर्षों से ही, नये सपने सेज हो।"
निराला जी के शब्दों में गहरी क्रांति की महक थी, और उनका लेखन हर भारतीय को आत्मविश्वास और संकल्प की ओर प्रेरित करता था। उन्होंने हमेशा कहा कि संघर्ष ही सच्चे जीवन का आधार है, और उसी से नई आशाएँ और उम्मीदें जन्म लेती हैं।
"गिरना और फिर उठना है, यही जीवन का रूप।
नवीनता से ही बनेगा, हर कष्ट का नाश।"
उनकी कविता "विनायक" और "राम की शक्ति पूजा" आज भी हम सभी को प्रेरित करती है। उन्होंने जीवन के हर पहलू को अपनी लेखनी से छुआ और यह सिखाया कि चाहे परिस्थितियाँ जैसी भी हों, यदि संकल्प दृढ़ हो तो सफलता निश्चित है।
"नए विचारों की धारा से, हर मन हो रोशन।
निराला की कविता से, जीवन की राह हो आसान।"
निराला जी का लेखन न केवल एक साहित्यिक धरोहर है, बल्कि यह हमें अपने जीवन में न केवल संघर्ष करने, बल्कि उसमें से कुछ नया रचनात्मकता और प्रेरणा प्राप्त करने की दिशा दिखाता है।
आइए, हम उनके विचारों और आदर्शों को अपने जीवन में अपनाएँ और हर कठिनाई को अवसर में बदलने का संकल्प लें।
धन्यवाद।
नमस्कार, आदरणीय श्रोतागण, मंचासीन अतिथिगण, और प्रिय साथियों।
आज इस मंच पर अपनी बात प्रारंभ करते हुए, मैं हिंदी साहित्य के महान लेखकों की प्रेरणा से एक दोहे के माध्यम से अपनी बात रखना चाहता हूँ। यह दोहा लेखकों के विचारों और उनके लेखन की शक्ति को प्रस्तुत करता है, जो समाज और जीवन को बदलने में सक्षम है।
"विचारों से बनता है जीवन, शब्दों से कुम्भ का रूप।
लेखन की सृजन शक्ति से, समाज को मिलता है सत्य का रूप।"
लेखक का कर्तव्य केवल शब्दों को जोड़ना नहीं, बल्कि उन शब्दों के माध्यम से समाज के हर पहलू को उजागर करना होता है। महान लेखक न केवल अपनी रचनाओं के द्वारा काव्य और कथा का निर्माण करते हैं, बल्कि समाज की समस्याओं, उनके भावनात्मक संघर्षों, और मानवता के मूल्यों को भी सामने लाते हैं।
"जिन्हें सच्चाई का प्याला मिले, वही लेखन में प्रवृत्त।
कर्म के द्वारा सत्य को दिखा, वह ही सच्चा लेखक ठहरते।"
लेखक के शब्दों में एक अद्वितीय शक्ति होती है, जो समाज को जागरूक करती है और लोगों के मन में बदलाव लाती है। चाहे वह कबीर के निर्गुणवाद के शब्द हों, निराला की साहसिक कविताएँ हो, या प्रेमचंद की कथाएँ—हर लेखक ने अपनी रचनाओं से जीवन को नए दृष्टिकोण से देखा और उसे परिभाषित किया।
"कलम का हर शब्द हो, सत्य की ओर बढ़े,
समाज को सही दिशा दे, जब लेखन से रक्त बहे।"
आज जब हम इस मंच पर एकत्रित हैं, तो हम सभी का कर्तव्य है कि हम इन महान लेखकों के विचारों और उनके संघर्षों से प्रेरित होकर अपने समाज को सशक्त और जागरूक बनाएँ। आइए, हम लेखन की शक्ति को समझें और इसे समाज के लिए एक सकारात्मक बदलाव लाने के उपकरण के रूप में इस्तेमाल करें।
धन्यवाद।
नमस्कार, आदरणीय श्रोतागण, मंचासीन अतिथिगण, और प्रिय साथियों।
आज इस मंच पर, मैं एक महान कवि और हिंदी साहित्य के स्तंभ, हरिवंश राय बच्चन जी के शब्दों से प्रेरित होकर अपनी बात प्रारंभ करना चाहता हूँ। उनकी कविताओं में जीवन की गहरी समझ, संघर्ष और उम्मीद की लहरें छिपी हैं। उनका लेखन हमें सिखाता है कि कठिनाइयाँ हमारे संघर्ष को प्रगति में बदल सकती हैं।
"राह में काँटे हों, या हो दूर अंबर का छाँव,
साहस से हर दर्द को, बना सकते हैं हम स्वर्णिम राव।"
हरिवंश राय बच्चन जी का जीवन और उनका लेखन इसी विश्वास से भरा हुआ था कि जीवन चाहे जैसा भी हो, संघर्ष से हम अपनी राह खुद चुन सकते हैं। उनकी काव्य पंक्तियाँ हमें आत्मविश्वास और संकल्प से भरी होती थीं, जो हमारे भीतर की शक्ति को उजागर करती हैं।
"निराशा की कोई गुंजाइश नहीं, हर हार के बाद है जीत,
जो अपनी राह पर चलता है, वह चलता है सितारों की रीत।"
उनकी कविता "मधुशाला" का उदाहरण लें, जहाँ उन्होंने जीवन के संघर्ष और उसके सुकून की ओर एक यात्रा का संकेत दिया। हरिवंश राय बच्चन जी का लेखन हमें यह सिखाता है कि जीवन में हार और जीत दोनों का अपना महत्व है।
"धैर्य से सहेजा जो दर्द, वही सुख का रास्ता हो,
प्यासे को न रुकने दो, वही सागर तक जाता हो।"
आज हम यहाँ एकत्र हुए हैं, तो हम सबका उद्देश्य यही होना चाहिए कि हम अपने जीवन की यात्रा में हर कठिनाई को आत्मविश्वास, धैर्य और साहस के साथ पार करें, जैसे हरिवंश राय बच्चन जी ने अपनी कविताओं के माध्यम से हमें सिखाया।
आइए, उनके शब्दों से प्रेरणा लेकर हम भी जीवन की राह को और बेहतर बनाने का संकल्प लें।
धन्यवाद।
1. नमस्कार, सभी उपस्थित महानुभावों को मेरा सादर प्रणाम।
2. नमस्कार, आदरणीय श्रोताओं, मेरे शब्दों को आपका स्नेहपूर्ण आशीर्वाद।
3. नमस्कार, आदरणीय श्रोतागण और प्रिय साथियों।
4. नमस्कार, आदरणीय श्रोतागण, मंचासीन अतिथिगण, और प्रिय साथियों।
5. "विनम्र वाणी बोलिए, मन का ताप मिटाय।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल जाय।"
6. "कलम की ताकत से इतिहास बदल जाए,
शब्दों से नई क्रांति की अलख जल जाए।
हर पंक्ति में हो सच की गूँज,
और हर मन में सच्चाई बस जाए।"