डॉ. शिवेन्द्र मोहन (N.D.) , सम्पादक – साभार समाचार ( हिंदी साप्ताहिक अख़बार ) , प्रकाशक – साईवर प्रेस , छावनी बेतिया 1987 में डिग्री इन कॉमर्स, 1991 में डिग्री इन नेचुरोपैथी , 1993 में दमा चिकित्सालय की परिकल्पना , 1997 में मशरूम उत्पादन प्रशिक्षण , २००२ में DNHE में प्रवेश रोल न. 013110739 रहा (ईग्नू ), 2005 में प्रथम वर्मी कम्पोस्ट उत्पादक उद्यमी रहा,
2009 में साईवर प्रेस की स्थापना, 2011 में “साभार समाचार” अख़बार को भारत सरकार से पंजीयन, 2017 में एग्रो किवा इंडस्ट्रीज को ज्वाइन किया, 2022 में नमामि गंडक परियोजना, & में जल, खर, दाना परियोजना, 2023 में पितृ परियोजना, 2024 OPD eHospital 2025 courier Services प्राकृतिक नियम (Law of Nature)– प्रकृति ईश्वरीय विधान का प्रत्यक्ष प्रतिमूर्ति है। उसकी नियमतता , सहज संचालकता और सन्तुलनात्मकता में ही हमें ईश्वरीय सत्ता का आभास होता है। प्रकृति अपना नियम नहीं बदलती तभी तो बाद रात और ग्रीष्म बाद बरसात का क्रम निर्बाध रूप से चलते रहता है। वह अपना संतुलन स्वयं कभी नहीं खराब करती है सूरज अगर तपाता है तो चन्द्रमा शीतलता प्रदान करती है पतझड़ अगर उजड़ता है तो बसंत फिर गुलजार करता है ग्रीष्म धरती को दग्घ करता तो बरसात उसे तृप्त है। यही कारण की प्रकृति का स्वरुप स्वं कभी विकृत नहीं होता यदि कभी उसके स्वरुप में विकृति आती भी है तो वह स्वं उसे दूर भी कर लेती है।
इस प्रकार प्रकृति की सुगढ़ता का आधार उसकी सन्तुलनात्मकता है और इस सन्तुलनात्मकता का आधार है प्रकृति निहित वह क्षमता जिससे वह अपनी विषमताओं के बीच समन्वय स्थापित करती है परस्पर विरोधी शक्तिया, प्रपंचो एवं प्रस्थितियो के बीच समझौता कराती है। फलतः वह अपना संतुलन कभी नहीं खोती। तात्पर्य यह है कि संतुलन एक प्रकृति नियम है। प्रकृति का एक अंश होने कारण हमारा स्वरुप भी तभी अक्षुण रह सकता है जब हम अपने आप को प्रकृति तरह ही संतुलित रखें। प्रकृति की तरह हमारे अंदर भी स्व संतुलन की क्षमता तो है ही. आवश्यकता सिर्फ इस है कि हम अपनी इस क्षमता को क्रियाशील बनावे।
यह संसार किसी से समझौता नहीं करता , समझौता तो व्यक्ति को संसार से करना पड़ता है और जो ऐसा नहीं करता वही उजड़ता है टूटता है विखरता है। जीव शास्त्री भी तो यही मानते है कि धरती से कई जीव प्रजातियां मात्र इसलिए विलुप्त हो गई क्योकि उनका प्रकृति से संतुलन समायोजन स्थापित नहीं हो सका।
मानव संतुलन- शरीर के अंदर-बाहर शारीरिक क्रियाओ का संतुलन , मस्तिष्क और शरीर का संतुलन और आध्यात्मिक अर्थ में ज्ञानेद्रियों और मन का , मन और आत्मा एवं आत्मा और यथार्थ का संतुलन। इन सभी तरह के संतुलनों में आत्मा और यथार्थ का संतुलन विशेष महत्वपूर्ण है। जिस प्रकार भौतिक शरीर और भौतिक वातावरण का असंतुलन शारीरिक रोग और कष्ट उत्पन्न करता है उसी प्रकार आत्मा और यथार्थ का विसंतुलन मानसिक अशांति , क्षोभ और उद्वेग उत्पन्न करता है। इन दुखद मनःस्थितिओ से बचने के लिए जो सर्व सुलभ मार्ग है वह यह है कि हम जीव जगत की वास्त्विकताओ को स्वीकार ले। यह स्वीकृति ही परिवेश के साथ हमारे संतुलन का आधार होती है।
प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति चिकित्सा का साधन हो क्यों ? शरीर और प्रकृति , शरीर के तत्व शरीर में और शरीर सभी तत्व प्रकृति में इसी चीज का ज्ञान बहुतो को है पर प्रकृति के तत्यो को शरीर पर प्रयोग करने मात्रा, रोग , शरीर, पर्यावरण, उम्र और समय के प्रयोग को जानना जरुरी है जिसे अनुभवी चिकित्सक के माध्यम से आपके रोग को ठीक किया जाता है और अनुभवी डॉक्टर के द्वारा किये गए प्रयोग को बेसिक एजुकेशन मानकर कार्य करते रहने से होने वाले अनुभव से आप अपने शरीर के अन्य रोगो से निरोगी रहने कला जान जाते है।
नोट – प्रकृति चिकित्सा जीवनी शक्ति पर काम करती है और कोरोना काल में जीवनी शक्ति के बारे में हम सभी भली भांति परिचित हो चुके है।
OPD eHospital- बढ़ती जनसंख्या समस्या का निदान है प्राकृतिक चिकित्सा का ज्ञान। रोगी की चिकित्सा रोग और चिकित्सा के अनुभव के साथ चिकित्सा का होना।
हर मेड पर पेड़
- बागवानी : बागवानी का ‘समेकित विकास मिशन’ किसानों की आमदनी दोगुनी करने में अहम भूमिका निभा रहा है। इसके लिए बेहतर रोपण साम्रगी, उन्नत बीज और प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन, हाई डेनसिटी प्लांटेशन, रिजुविनेंशन, प्रिसिजन फार्मिंग जैसे कदम उठाए गये हैं।
- एकीकृत फार्मिंग (Integrated farming) : हमारी सरकार एकीकृत कृषि प्रणाली (आईएफएस) पर भी जोर दे रही है। खेती के साथ-साथ बागवानी, पशुधन, मधुमक्खी पालन आदि पर ध्यान दिया जा रहा है। इस योजना से किसानों की ना सिर्फ निरंतर आय में वृद्धि होगी बल्कि सूखा, बाढ़ या अन्य गंभीर मौसमी आपदाओं के प्रभाव को भी कम किया जा सकेगा ।
- श्वेत क्रान्ति : राष्ट्रीय गोकुल मिशन से देशी नस्लों को संरक्षण मिल रहा है। साथ ही नस्लों में आनुवंशिक (hereditary) संरचना में भी सुधार किया जा रहा है। जिससे दूध उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है। सरकार डेयरी प्रसंस्करण और अवसंरचना (Infrastructure) विकास निधि स्थापित करने जा रही है। साथ ही डेयरी उद्यमिता विकास स्कीम (डीईडीएस) से स्वरोजगार के अवसर भी पैदा हो रहे हैं। श्वेत क्रांति में तेजी लाई गई है ताकि किसानो की आय में वृद्धि हो सके ।
- नीली क्रांति : यह समेकित मात्स्यिकी विकास व प्रबंधन की व्यवस्था वाली नई पहल है जिसमें अंतर्देशीय मात्स्ियकी, जल कृषि, समुद्री मछली, मैरीकल्चर व राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एनएफडीबी) द्वारा किए गए कार्यकलापों के अलावा डीप सी फीशिंग की भी कार्य योजना प्रारंभ की गई है।
- कृषि वानिकी : हर खेत के मेड़ पर पेड़, परती भूमि पर पेड़ तथा इंटर क्रॉपिंग में पेड़ लगाने के उद्देश्य से पहली बार“कृषि वानिकी उपमिशन” क्रियान्वित किया गया है।
- मधुमक्खीपालन विकास : बड़ी संख्या में किसानों / मधुमक्खीपालकों को मधुमक्खीपालन में प्रशिक्षित किया जा रहा है। साथ ही मधुमक्खीपालकों और शहद समितियों // फर्मों कंपनियों / मधुमक्खी कॉलोनियों के साथ पंजीकरण किया जा रहा है। प्रत्येक राज्य में एक रोल मॉडल समेकित मधुमक्खीपालन विकास केंद्र (आईबीडीसी) की स्थापना की जा रही है।
- रूरल बैकयार्ड पोल्ट्री डेवलपमेंट: इसके तहत गरीब मुर्गीपालक परिवारों कों पूरक आय (Supplemental Income) एवं पोषण संबंधी सहायता प्रदान की जा रही है। राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत भेड़, बकरी, सूकर एवं बत्तख पालकों में अपनी आय बढ़ाने हेतु अवसर प्रदान करते हुए उनमे ज़रूरी जागरूकता भी पैदा की जा रही है।
- प्रेस का जनता दरबार: लोकतंत्र की धरोहर
प्रेस को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, क्योंकि यह जनता और शासन के बीच सेतु का कार्य करता है। जैसे राजा जनता दरबार में अपनी प्रजा की समस्याएं सुनता था, वैसे ही आज प्रेस समाज की आवाज बनकर हर वर्ग के मुद्दों को सामने लाती है।
भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में प्रेस की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। यहां हर नागरिक को अपनी बात रखने का अधिकार है, और प्रेस इस अधिकार को आवाज देकर लोकतंत्र को सशक्त बनाती है। भ्रष्टाचार, सामाजिक अन्याय, और राजनीतिक कुशासन को उजागर करने में प्रेस की निर्भीकता इसे जनता का सच्चा मित्र बनाती है।
डिजिटल युग में प्रेस की जिम्मेदारी और बढ़ गई है। हालांकि, इसके साथ फेक न्यूज़ और पक्षपाती पत्रकारिता की चुनौतियां भी सामने आई हैं। इसलिए प्रेस को निष्पक्षता और ईमानदारी के साथ अपनी भूमिका निभानी चाहिए।
प्रेस का जनता दरबार हर नागरिक की उम्मीदों और आकांक्षाओं का प्रतीक है। यह न केवल समस्याओं को उजागर करता है, बल्कि समाज को समाधान की दिशा में प्रेरित भी करता है। सही मायनों में, प्रेस भारतीय लोकतंत्र की आत्मा है।
No comments:
Post a Comment